27 साल में भी अजमेर नहीं पहुंचे पृथ्वीराज चौहान

आज की हकीकत
परिषद प्रशासन सम्राट की प्रतिमा स्थापित करने के अपने दायित्व के प्रति कितना गंभीर था इसका अंदाज इससे आसानी से लग जाता है कि संबंधित फर्म ने भुगतान लेने के बावजूद प्रतिमा अजमेर नहीं भेजी और परिषद ने उसके खिलाफ पुलिस में प्राथमिकी दर्ज करा कर दायित्व की इतिश्री कर ली।
जबकि प्रतिमा स्थापित करने का सीधा उद्देश्य अजमेर को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करना था। बोर्ड में यह तय हुआ था कि दुर्ग पर प्रतिमा ऐसे बड़े प्लेटफार्म पर स्थापित किया जाए जिससे वह अजमेर के किसी भी भाग से आसानी से नजर आ सके।
यह लिया था फैसला
सरकार की मंशा यह थी कि इतिहास में अजमेर को गौरवशाली स्थान दिलाने वाले अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के हमारी आने वाली पीढ़ियों के दिल-दिमाग में बसे रहे तथा इतिहास पुरुष को जनता जान सके। इसी लिहाज से 27 साल पहले प्रतिमा स्थापित करने का फैसला लिया गया था।
राज्य की हृदयस्थली और उत्तर भारत के सबसे ऊंचे पठारी भू-भाग पर बसे अजमेर शहर को पर्यटन, इतिहास, व्यवसाय व धार्मिक लिहाज से विकसित करने के मद्देनजर 4 अप्रैल 84 को तारागढ़ विकास बोर्ड का गठन किया गया।
तत्कालीन मुख्यमंत्री शिव चरण माथुर की अध्यक्षता में गठित बोर्ड की 28 अप्रैल 84 को सर्किट हाउस में हुई बैठक में तारागढ़ दुर्ग पर सम्राट की प्रतिमा स्थापित करने का फैसला लिया गया।
बोर्ड के सदस्य सचिव एवं तत्कालीन कलेक्टर टी आर वर्मा की अध्यक्षता में हुई बैठक में सम्राट पृथ्वीराज चौहान की प्रतिमा को बनवाने तथा उसे दुर्ग पर लगवाने की जिम्मेदारी नगर परिषद (अब नगर निगम) को दी गई। इसी क्रम में नगर परिषद द्वारा मुंबई की फर्म मैसर्स यावलकर आर्ट को प्रतिमा बनाने का आर्डर भी दे दिया।
जिसके अनुसार प्रतिमा की लागत एक लाख नब्बे हजार, मिनिएचर मॉडल साढ़े सात हजार तथा 19 हजार रुपए का ट्रांसपोर्टेशन चार्ज का भुगतान दो किस्त में देना तय हुआ। नगर परिषद ने यह राशि संबंधित फर्म को भुगतान भी कर दी। मजेदार बात यह है कि नगर परिषद को सम्राट चौहान की प्रतिमा सितंबर 1984 में मिलनी थी लेकिन आज तक उसका अता-पता नहीं है।
स्मारक बनाया देखभाल कम
सम्राट को सम्मान देने का सच्चा प्रयास बारह साल बाद सन् 1996 में यूआईटी के तत्कालीन अध्यक्ष ओकार सिंह लखावत ने किया। यह बात अलग है कि प्रतिमा दुर्ग के स्थान पर उसके नीचे पहाड़ी स्मारक पर स्थापित हो सकी।
लोकार्पण तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने किया। अब यह स्मारक पर्यटन का केंद्र है लेकिन पर्याप्त सुविधाओं और देखभाल को तरस रहा है। पर्यटन की दृष्टि से तारागढ़ की लोकेशन पर्यटकों में लोकप्रिय हुई है मगर बेहतर पर्यटन केंद्र की दिशा में प्रयासों की फिलहाल कमी है।
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