मंगलवार, 24 मई 2011

CHOUHAN

गौरवशाली चौहान वंशThis is a featured page

चौहान वंश
अग्निवंश के सम्मेलन कर्ता ऋषि

१. वत्सम ऋषि, २. भार्गव ऋषि, ३. अत्रि ऋषि, ४. विश्वामित्र, ५. चमन ऋषि




विभिन्न ऋषियों ने प्रकट होकर अग्नि में आहुति दी तो विभिन्न चार वंशों की उत्पत्ति हुयी जो इस इस प्रकार से है-

१. पाराशर ऋषि ने प्रकट होकर आहुति दी तो परिहार की उत्पत्ति हुयी ( पाराशर गोत्र )
. भारद्वाज ऋषि ने आहुति दी तो सोलंकी की उत्पत्ति हुयी ( भारद्वाज गोत्र )

. वत्स ऋषि ने आहुति दी तो चतुर्भुज चौहान की उत्पत्ति हुयी ( वत्स गोत्र )

. वशिष्ठ ऋषि की आहुति से परमार की उत्पत्ति हुयी ( वशिष्ठ गोत्र )





चौहानों की उत्पत्ति आबू शिखर मे हुयी

दोहा-
चौहान को वंश उजागर है,जिन जन्म लियो धरि के भुज चारी,
बौद्ध मतों को विनास कियो और विप्रन को दिये वेद सुचारी॥


चौबीस शाखायें चौहानों की


चौहान की कई पीढियों के बाद अजय पाल जी महाराज पैदा हुये जिन्होने आबू पर्वत छोड कर अजमेर शहर बसाया . अजमेर मे पृथ्वी तल से १५ मील ऊंचा तारागढ किला बनाया जिसकी वर्तमान में १० मील ऊंचाई है, महाराज अजयपाल जी चक्रवर्ती सम्राट हुये. इसी में कई वंश बाद माणिकदेवजू हुये,जिन्होने सांभर झील बनवाई थी। सांभर बिन अलोना खाय,माटी बिके यह भेद कहाय" इनकी बहुत पीढियों के बाद माणिकदेवजू उर्फ़ लाखनदेवजू हुये. इनके चौबीस पुत्र हुये और इन्ही नामो से २४ शाखायें चलीं चौबीस शाखायें इस प्रकार से है -------


१. मुहुकर्ण जी उजपारिया या उजपालिया चौहान पृथ्वीराज का वंश

२. लालशाह उर्फ़ लालसिंह मदरेचा चौहान जो मद्रास में बसे हैं

३. हरि सिंह जी धधेडा चौहान बुन्देलखंड और सिद्धगढ में बसे है

४. सारदूलजी सोनगरा चौहान जालोर झन्डी ईसानगर मे बसे है

५. भगतराजजी निर्वाण चौहान खंडेला से बिखराव

६. अष्टपाल जी हाडा चौहान कोटा बूंदी गद्दी सरकार से सम्मानित २१ तोपों की सलामी

७. चन्द्रपाल जी भदौरिया चौहान चन्द्रवार भदौरा गांव नौगांव जिला आगरा

८. चौहिल जी चौहिल चौहान नाडौल मारवाड बिखराव हो गया

९. शूरसेन जी देवडा चौहान सिरोही (सम्मानित)

१०. सामन्त जी साचौरा चौहान सन्चौर का राज्य टूट गया

११. मौहिल जी मौहिल चौहान मोहिल गढ का राज्य टूट गया

१२. खेवराज जी उर्फ़ अंड जी वालेगा चौहान पटल गढ का राज्य टूट गया बिखराव

१३. पोहपसेन जी पवैया चौहान पवैया गढ गुजरात

१४. मानपाल जी मोरी चौहान चान्दौर गढ की गद्दी

१५. राजकुमारजी राजकुमार चौहान बालोरघाट जिला सुल्तानपुर में

१६. जसराजजी जैनवार चौहान पटना बिहार गद्दी टूट गयी

१७. सहसमल जी वालेसा चौहान मारवाड गद्दी

१८. बच्छराजजी बच्छगोत्री चौहान अवध में गद्दी टूटगयी.

१९. चन्द्रराजजी चन्द्राणा चौहान अब यह कुल खत्म हो गया है

२०. खनगराजजी कायमखानी चौहान झुन्झुनू मे है लेकिन गद्दी टूट गयी है,मुसलमान बन गये है

२१. हर्राजजी जावला चौहान जोहरगढ की गद्दी थे लेकिन टूट गयी.

२२. धुजपाल जी गोखा चौहान गढददरेश मे जाकर रहे.

२३. किल्लनजी किशाना चौहान किशाना गोत्र के गूजर हुये जो बांदनवाडा अजमेर मे है

२४. कनकपाल जी कटैया चौहान सिद्धगढ मे गद्दी (पंजाब)


उपरोक्त प्रशाखाओं में अब करीब १२५ हैं
बाद में आनादेवजू पैदा हुये
आनादेवजू के सूरसेन जी और दत्तकदेवजू पैदा हुये
सूरसेन जी के ढोडेदेवजी हुये जो ढूढाड प्रान्त में था
ढोडेदेवजी के चौरंगी-— सोमेश्वरजी --— कान्हदेवजी हुये

सोम्श्वरजी को चन्द्रवंश में उत्पन्न अनंगपाल की पुत्री कमला ब्याही गयीं थीं

सोमेश्वरजी के पृथ्वीराजजी हुये
पृथ्वीराजजी के-
रेनसी कुमार जो कन्नौज की लडाई मे मारे गये

अक्षयकुमारजी जो महमूदगजनवी के साथ लडाई मे मारे गये

बलभद्र जी गजनी की लडाई में मारे गये

इन्द्रसी कुमार जो चन्गेज खां की लडाई में मारे गये

पृथ्वीराज ने अपने चाचा कान्हादेवजी का लडका गोद लिया जिसका नाम राव हम्मीरदेवजू था

हम्मीरदेवजू के-दो पुत्र हुये रावरतन जी और खानवालेसी जी

रावरतन सिंह जी ने नौ विवाह किये थे और जिनके अठारह संताने थीं,
सत्रह पुत्र मारे गये
एक पुत्र चन्द्रसेनजी रहे
चार पुत्र बांदियों के रहे

खानवालेसी जी हुये जो नेपाल चले गये और सिसौदिया चौहान कहलाये.

रावरतन देवजी के पुत्र संकट देवजी हुये


संकटदेव जी के छ: पुत्र हुये
१. धिराज जू जो रिजोर एटा में जाकर बसे इन्हे राजा रामपुर की लडकी ब्याही गयी थी
२. रणसुम्मेरदेवजी जो इटावा खास में जाकर बसे और बाद में प्रतापनेर में बसे
३. प्रतापरुद्रजी जो मैनपुरी में बसे
४. चन्द्रसेन जी जो चकरनकर में जाकर बसे
५. चन्द्रशेव जी जो चन्द्रकोणा आसाम में जाकर बसे इनकी आगे की संतति में सबल सिंह चौहान हुये जिन्होने महाभारत पुराण की टीका लिखी.

मैनपुरी में बसे राजा प्रतापरुद्रजी के दो पुत्र हुये
१. राजा विरसिंह जू देव जो मैनपुरी में बसे

२. धारक देवजू जो पतारा क्षेत्र मे जाकर बसे


मैनपुरी के राजा विरसिंह जू देव के चार पुत्र हुये
१. महाराजा धीरशाह जी इनसे मैनपुरी के आसपास के गांव बसे

२. राव गणेशजी जो एटा में गंज डुडवारा में जाकर बसे इनके २७ गांव पटियाली आदि हैं

३. कुंअर अशोकमल जी के गांव उझैया अशोकपुर फ़कीरपुर आदि हैं

४. पूर्णमल जी जिनके सौरिख सकरावा जसमेडी आदि गांव हैं

महाराजा धीरशाह जी के तीन पुत्र हुये
१. भाव सिंह जी जो मैनपुरी में बसे

२. भारतीचन्द जी जिनके नोनेर कांकन सकरा उमरैन दौलतपुर आदि गांव बसे

२. खानदेवजू जिनके सतनी नगलाजुला पंचवटी के गांव हैं

खानदेव जी के भाव सिंह जी हुये
भावसिंह जी के देवराज जी हुये
देवराज जी के धर्मांगद जी हुये
धर्मांगद जी के तीन पुत्र हुये

१. जगतमल जी जो मैनपुरी मे बसे

२. कीरत सिंह जी जिनकी संतति किशनी के आसपास है

३. पहाड सिंह जी जो सिमरई सहारा औरन्ध आदि गावों के आसपास हैं

CHOUHAN

  • चह्वान (चतुर्भुज)

    अग्निवंश के सम्मेलन कर्ता ऋषि

    १.वत्सम ऋषि,२.भार्गव ऋषि,३.अत्रि ऋषि,४.विश्वामित्र,५.चमन ऋषि

    विभिन्न ऋषियों ने प्रकट होकर अग्नि में आहुति दी तो विभिन्न चार वंशों की उत्पत्ति हुयी जो इस इस प्रकार से है-

    १.पाराशर ऋषि ने प्रकट होकर आहुति दी तो परिहार की उत्पत्ति हुयी (पाराशर गोत्र)
    २.वशिष्ठ ऋषि की आहुति से परमार की उत्पत्ति हुयी (वशिष्ठ गोत्र)
    ३.भारद्वाज ऋषि ने आहुति दी तो सोलंकी की उत्पत्ति हुयी (भारद्वाज गोत्र)
    ४.वत्स ऋषि ने आहुति दी तो चतुर्भुज चौहान की उत्पत्ति हुयी (वत्स गोत्र)

    चौहानों की उत्पत्ति आबू शिखर मे हुयी
    दोहा-
    चौहान को वंश उजागर है,जिन जन्म लियो धरि के भुज चारी,
    बौद्ध मतों को विनास कियो और विप्रन को दिये वेद सुचारी॥

    चौहान की कई पीढियों के बाद अजय पाल जी महाराज पैदा हुये
    जिन्होने आबू पर्वत छोड कर अजमेर शहर बसाया
    अजमेर मे पृथ्वी तल से १५ मील ऊंचा तारागढ किला बनाया जिसकी वर्तमान में १० मील ऊंचाई है,महाराज अजयपाल जी चक्रवर्ती सम्राट हुये.
    इसी में कई वंश बाद माणिकदेवजू हुये,जिन्होने सांभर झील बनवाई थी।
    सांभर बिन अलोना खाय,माटी बिके यह भेद कहाय"
    इनकी बहुत पीढियों के बाद माणिकदेवजू उर्फ़ लाखनदेवजू हुये
    इनके चौबीस पुत्र हुये और इन्ही नामो से २४ शाखायें चलीं
    चौबीस शाखायें इस प्रकार से है-

    १. मुहुकर्ण जी उजपारिया या उजपालिया चौहान पृथ्वीराज का वंश
    २.लालशाह उर्फ़ लालसिंह मदरेचा चौहान जो मद्रास में बसे हैं
    ३. हरि सिंह जी धधेडा चौहान बुन्देलखंड और सिद्धगढ में बसे है
    ४. सारदूलजी सोनगरा चौहान जालोर झन्डी ईसानगर मे बसे है
    ५. भगतराजजी निर्वाण चौहान खंडेला से बिखराव
    ६. अष्टपाल जी हाडा चौहान कोटा बूंदी गद्दी सरकार से सम्मानित २१ तोपों की सलामी
    ७.चन्द्रपाल जी भदौरिया चौहान चन्द्रवार भदौरा गांव नौगांव जिला आगरा
    ८.चौहिल जी चौहिल चौहान नाडौल मारवाड बिखराव हो गया
    ९. शूरसेन जी देवडा चौहान सिरोही (सम्मानित)
    १०.सामन्त जी साचौरा चौहान सन्चौर का राज्य टूट गया
    ११.मौहिल जी मौहिल चौहान मोहिल गढ का राज्य टूट गया
    १२.खेवराज जी उर्फ़ अंड जी वालेगा चौहान पटल गढ का राज्य टूट गया बिखराव
    १३. पोहपसेन जी पवैया चौहान पवैया गढ गुजरात
    १४. मानपाल जी मोरी चौहान चान्दौर गढ की गद्दी
    १५. राजकुमारजी राजकुमार चौहान बालोरघाट जिला सुल्तानपुर में
    १६.जसराजजी जैनवार चौहान पटना बिहार गद्दी टूट गयी
    १७.सहसमल जी वालेसा चौहान मारवाड गद्दी
    १८.बच्छराजजी बच्छगोत्री चौहान अवध में गद्दी टूटगयी.
    १९.चन्द्रराजजी चन्द्राणा चौहान अब यह कुल खत्म हो गया है
    २०. खनगराजजी कायमखानी चौहान झुन्झुनू मे है लेकिन गद्दी टूट गयी है,मुसलमान बन गये है
    २१. हर्राजजी जावला चौहान जोहरगढ की गद्दी थे लेकिन टूट गयी.
    २२.धुजपाल जी गोखा चौहान गढददरेश मे जाकर रहे.
    २३.किल्लनजी किशाना चौहान किशाना गोत्र के गूजर हुये जो बांदनवाडा अजमेर मे है
    २४.कनकपाल जी कटैया चौहान सिद्धगढ मे गद्दी (पंजाब)

    उपरोक्त प्रशाखाओं में अब करीब १२५ हैं

    बाद में आनादेवजू पैदा हुये
    आनादेवजू के सूरसेन जी और दत्तकदेवजू पैदा हुये
    सूरसेन जी के ढोडेदेवजी हुये जो ढूढाड प्रान्त में था,यह नरमांस भक्षी भी थे.
    ढोडेदेवजी के चौरंगी-—सोमेश्वरजी--—कान्हदेवजी हुये

    सोम्श्वरजी को चन्द्रवंश में उत्पन्न अनंगपाल की पुत्री कमला ब्याही गयीं थीं

    सोमेश्वरजी के पृथ्वीराजजी हुये
    पृथ्वीराजजी के-
    रेनसी कुमार जो कन्नौज की लडाई मे मारे गये
    अक्षयकुमारजी जो महमूदगजनवी के साथ लडाई मे मारे गये
    बलभद्र जी गजनी की लडाई में मारे गये
    इन्द्रसी कुमार जो चन्गेज खां की लडाई में मारे गये

    पृथ्वीराज ने अपने चाचा कान्हादेवजी का लडका गोद लिया जिसका नाम राव हम्मीरदेवजू था
    हम्मीरदेवजू के-दो पुत्र हुये रावरतन जी और खानवालेसी जी
    रावरतन सिंह जी ने नौ विवाह किये थे और जिनके अठारह संताने थीं,
    सत्रह पुत्र मारे गये
    एक पुत्र चन्द्रसेनजी रहे
    चार पुत्र बांदियों के रहे

    खानवालेसी जी हुये जो नेपाल चले गये और सिसौदिया चौहान कहलाये.

    रावरतन देवजी के पुत्र संकट देवजी हुये
    संकटदेव जी के छ: पुत्र हुये
    १. धिराज जू जो रिजोर एटा में जाकर बसे इन्हे राजा रामपुर की लडकी ब्याही गयी थी
    २. रणसुम्मेरदेवजी जो इटावा खास में जाकर बसे और बाद में प्रतापनेर में बसे
    ३. प्रतापरुद्रजी जो मैनपुरी में बसे
    ४. चन्द्रसेन जी जो चकरनकर में जाकर बसे
    ५. चन्द्रशेव जी जो चन्द्रकोणा आसाम में जाकर बसे इनकी आगे की संतति में सबल सिंह चौहान हुये जिन्होने महाभारत पुराण की टीका लिखी.

    मैनपुरी में बसे राजा प्रतापरुद्रजी के दो पुत्र हुये
    १.राजा विरसिंह जू देव जो मैनपुरी में बसे
    २. धारक देवजू जो पतारा क्षेत्र मे जाकर बसे

    मैनपुरी के राजा विरसिंह जू देव के चार पुत्र हुये
    १. महाराजा धीरशाह जी इनसे मैनपुरी के आसपास के गांव बसे
    २.राव गणेशजी जो एटा में गंज डुडवारा में जाकर बसे इनके २७ गांव पटियाली आदि हैं
    ३. कुंअर अशोकमल जी के गांव उझैया अशोकपुर फ़कीरपुर आदि हैं
    ४.पूर्णमल जी जिनके सौरिख सकरावा जसमेडी आदि गांव हैं

    महाराजा धीरशाह जी के तीन पुत्र हुये
    १. भाव सिंह जी जो मैनपुरी में बसे
    २. भारतीचन्द जी जिनके नोनेर कांकन सकरा उमरैन दौलतपुर आदि गांव बसे
    २. खानदेवजू जिनके सतनी नगलाजुला पंचवटी के गांव हैं

    खानदेव जी के भाव सिंह जी हुये
    भावसिंह जी के देवराज जी हुये
    देवराज जी के धर्मांगद जी हुये
    धर्मांगद जी के तीन पुत्र हुये
    १. जगतमल जी जो मैनपुरी मे बसे
    २. कीरत सिंह जी जिनकी संतति किशनी के आसपास है
    ३. पहाड सिंह जी जो सिमरई सहारा औरन्ध आदि गावों के आसपास हैं

CHOUHAN

चौहान

चौहान या चव्हाण उत्तर भारत की आर्य जाति का एक वंश है। चौहान गोत्र गुर्जर तथा राजपूतों में आता है।विद्वानो का कहना है कि चौहान मुल से गुर्जर थे तथा १० वी शदी तक गुर्जर प्रतिहारो के अधीन थे।[१][२] चौहान साम्भर झील और पुष्कर, आमेर और वर्तमान जयपुर, राजस्थान में होते थे, जो अब सारे उत्तर भारत में फैले हुए हैं। इसके अलावा मैनपुरी उत्तर प्रदेश एवं नीमराना, राजस्थान के अलवर जिले में भी पाये जाते हैं।

[संपादित करें] सन्दर्भ

  1. Dasharatha Sharma (1975)। Early Chauhān dynasties: a study of Chauhān political history, Chauhān political institutions, and life in the Chauhān dominions, from 800 to 1316 A.D.। Motilal Banarsidass। ISBN 0842606181, ISBN 9780842606189। “According to a number of scholars, the agnikula clas were originally Gurjaras.”
  2. Royal Asiatic Society of Great Britain and Ireland (1834)। Journal of the Royal Asiatic Society of Great Britain and Ireland, Volume 1999। Royal Asiatic Society of Great Britain & Ireland.। “By that marriage Haarsha had contracted an alliance with the dominant race of the Gurjaras, of whom the chohans were a prominent clan.”
चह्वान (चतुर्भुज)
अग्निवंश के सम्मेलन कर्ता ऋषि
१.वत्सम ऋषि,२.भार्गव ऋषि,३.अत्रि ऋषि,४.विश्वामित्र,५.चमन ऋषि
विभिन्न ऋषियों ने प्रकट होकर अग्नि में आहुति दी तो विभिन्न चार वंशों की उत्पत्ति हुयी जो इस इस प्रकार से है-
१.पाराशर ऋषि ने प्रकट होकर आहुति दी तो परिहार की उत्पत्ति हुयी (पाराशर गोत्र) २.वशिष्ठ ऋषि की आहुति से परमार की उत्पत्ति हुयी (वशिष्ठ गोत्र) ३.भारद्वाज ऋषि ने आहुति दी तो सोलंकी की उत्पत्ति हुयी (भारद्वाज गोत्र) ४.वत्स ऋषि ने आहुति दी तो चतुर्भुज चौहान की उत्पत्ति हुयी (वत्स गोत्र)
चौहानों की उत्पत्ति आबू शिखर मे हुयी दोहा- चौहान को वंश उजागर है,जिन जन्म लियो धरि के भुज चारी, बौद्ध मतों को विनास कियो और विप्रन को दिये वेद सुचारी॥
चौहान की कई पीढियों के बाद अजय पाल जी महाराज पैदा हुये जिन्होने आबू पर्वत छोड कर अजमेर शहर बसाया अजमेर मे पृथ्वी तल से १५ मील ऊंचा तारागढ किला बनाया जिसकी वर्तमान में १० मील ऊंचाई है,महाराज अजयपाल जी चक्रवर्ती सम्राट हुये. इसी में कई वंश बाद माणिकदेवजू हुये,जिन्होने सांभर झील बनवाई थी। सांभर बिन अलोना खाय,माटी बिके यह भेद कहाय" इनकी बहुत पीढियों के बाद माणिकदेवजू उर्फ़ लाखनदेवजू हुये इनके चौबीस पुत्र हुये और इन्ही नामो से २४ शाखायें चलीं चौबीस शाखायें इस प्रकार से है-
१. मुहुकर्ण जी उजपारिया या उजपालिया चौहान पृथ्वीराज का वंश २.लालशाह उर्फ़ लालसिंह मदरेचा चौहान जो मद्रास में बसे हैं ३. हरि सिंह जी धधेडा चौहान बुन्देलखंड और सिद्धगढ में बसे है ४. सारदूलजी सोनगरा चौहान जालोर झन्डी ईसानगर मे बसे है ५. भगतराजजी निर्वाण चौहान खंडेला से बिखराव ६. अष्टपाल जी हाडा चौहान कोटा बूंदी गद्दी सरकार से सम्मानित २१ तोपों की सलामी ७.चन्द्रपाल जी भदौरिया चौहान चन्द्रवार भदौरा गांव नौगांव जिला आगरा ८.चौहिल जी चौहिल चौहान नाडौल मारवाड बिखराव हो गया ९. शूरसेन जी देवडा चौहान सिरोही (सम्मानित) १०.सामन्त जी साचौरा चौहान सन्चौर का राज्य टूट गया ११.मौहिल जी मौहिल चौहान मोहिल गढ का राज्य टूट गया १२.खेवराज जी उर्फ़ अंड जी वालेगा चौहान पटल गढ का राज्य टूट गया बिखराव १३. पोहपसेन जी पवैया चौहान पवैया गढ गुजरात १४. मानपाल जी मोरी चौहान चान्दौर गढ की गद्दी १५. राजकुमारजी राजकुमार चौहान बालोरघाट जिला सुल्तानपुर में १६.जसराजजी जैनवार चौहान पटना बिहार गद्दी टूट गयी १७.सहसमल जी वालेसा चौहान मारवाड गद्दी १८.बच्छराजजी बच्छगोत्री चौहान अवध में गद्दी टूटगयी. १९.चन्द्रराजजी चन्द्राणा चौहान अब यह कुल खत्म हो गया है २०. खनगराजजी कायमखानी चौहान झुन्झुनू मे है लेकिन गद्दी टूट गयी है,मुसलमान बन गये है २१. हर्राजजी जावला चौहान जोहरगढ की गद्दी थे लेकिन टूट गयी. २२.धुजपाल जी गोखा चौहान गढददरेश मे जाकर रहे. २३.किल्लनजी किशाना चौहान किशाना गोत्र के गूजर हुये जो बांदनवाडा अजमेर मे है २४.कनकपाल जी कटैया चौहान सिद्धगढ मे गद्दी (पंजाब)
उपरोक्त प्रशाखाओं में अब करीब १२५ हैं
बाद में आनादेवजू पैदा हुये आनादेवजू के सूरसेन जी और दत्तकदेवजू पैदा हुये सूरसेन जी के ढोडेदेवजी हुये जो ढूढाड प्रान्त में था,यह नरमांस भक्षी भी थे. ढोडेदेवजी के चौरंगी-—सोमेश्वरजी--—कान्हदेवजी हुये
सोम्श्वरजी को चन्द्रवंश में उत्पन्न अनंगपाल की पुत्री कमला ब्याही गयीं थीं
सोमेश्वरजी के पृथ्वीराजजी हुये पृथ्वीराजजी के- रेनसी कुमार जो कन्नौज की लडाई मे मारे गये अक्षयकुमारजी जो महमूदगजनवी के साथ लडाई मे मारे गये बलभद्र जी गजनी की लडाई में मारे गये इन्द्रसी कुमार जो चन्गेज खां की लडाई में मारे गये
पृथ्वीराज ने अपने चाचा कान्हादेवजी का लडका गोद लिया जिसका नाम राव हम्मीरदेवजू था हम्मीरदेवजू के-दो पुत्र हुये रावरतन जी और खानवालेसी जी रावरतन सिंह जी ने नौ विवाह किये थे और जिनके अठारह संताने थीं, सत्रह पुत्र मारे गये एक पुत्र चन्द्रसेनजी रहे चार पुत्र बांदियों के रहे
खानवालेसी जी हुये जो नेपाल चले गये और सिसौदिया चौहान कहलाये.
रावरतन देवजी के पुत्र संकट देवजी हुये संकटदेव जी के छ: पुत्र हुये १. धिराज जू जो रिजोर एटा में जाकर बसे इन्हे राजा रामपुर की लडकी ब्याही गयी थी २. रणसुम्मेरदेवजी जो इटावा खास में जाकर बसे और बाद में प्रतापनेर में बसे ३. प्रतापरुद्रजी जो मैनपुरी में बसे ४. चन्द्रसेन जी जो चकरनकर में जाकर बसे ५. चन्द्रशेव जी जो चन्द्रकोणा आसाम में जाकर बसे इनकी आगे की संतति में सबल सिंह चौहान हुये जिन्होने महाभारत पुराण की टीका लिखी.
मैनपुरी में बसे राजा प्रतापरुद्रजी के दो पुत्र हुये १.राजा विरसिंह जू देव जो मैनपुरी में बसे २. धारक देवजू जो पतारा क्षेत्र मे जाकर बसे
मैनपुरी के राजा विरसिंह जू देव के चार पुत्र हुये १. महाराजा धीरशाह जी इनसे मैनपुरी के आसपास के गांव बसे २.राव गणेशजी जो एटा में गंज डुडवारा में जाकर बसे इनके २७ गांव पटियाली आदि हैं ३. कुंअर अशोकमल जी के गांव उझैया अशोकपुर फ़कीरपुर आदि हैं ४.पूर्णमल जी जिनके सौरिख सकरावा जसमेडी आदि गांव हैं
महाराजा धीरशाह जी के तीन पुत्र हुये १. भाव सिंह जी जो मैनपुरी में बसे २. भारतीचन्द जी जिनके नोनेर कांकन सकरा उमरैन दौलतपुर आदि गांव बसे २. खानदेवजू जिनके सतनी नगलाजुला पंचवटी के गांव हैं
खानदेव जी के भाव सिंह जी हुये भावसिंह जी के देवराज जी हुये देवराज जी के धर्मांगद जी हुये धर्मांगद जी के तीन पुत्र हुये १. जगतमल जी जो मैनपुरी मे बसे २. कीरत सिंह जी जिनकी संतति किशनी के आसपास है ३. पहाड सिंह जी जो सिमरई सहारा औरन्ध आदि गावों के आसपास हैं

CHOUHAN

27 साल में भी अजमेर नहीं पहुंचे पृथ्वीराज चौहान


एक तरफ सरकार प्राचीन धरोहरों और विरासतों को नया रूप देकर नए विकास का दावा कर रही है। तेजी से फैल रहे पर्यटन उद्योग में देसी-विदेशी पर्यटकों को इतिहास और इतिहास पुरुषों से परिचित कराने के लिए प्रयास भी किए जा रहे हैं मगर अजमेर की पहचान माने जाने वाले अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान (1166-1192 ईस्वी) की मुंबई में बनने के लिए दी गई प्रतिमा पिछले 27 साल में 1050 किमी का मुंबई से अजमेर तक का सफर तय नहीं कर पाई है। राज्य की शैक्षिक राजधानी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी खास पहचान रखने वाले अजमेर के साथ सरकारी भेदभाव यूं तो लगातार हो रहा है मगर यहां के गौरवशाली सम्राट के साथ ऐसा भेदभाव उपेक्षा की पराकाष्ठा मानी जा सकती है। कई सरकारें बदलने के बावजूद तारागढ़ के लिए प्रस्तावित यह प्रतिमा आज नदारद है। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर के कार्यकाल में 4 अप्रैल 84 को गठित तारागढ़ विकास बोर्ड की बैठक में यह ऐतिहासिक फैसला लिया गया था। प्रतिमा लगाने के लिए मुंबई की एक फर्म को दो लाख रुपए का भुगतान भी किया गया। पृथ्वीराज चौहान की प्रतिमा 27 साल से अजमेर क्यों नहीं पहुंची? यह सवाल अभी तक अनुत्तरित है।
आज की हकीकत

परिषद प्रशासन सम्राट की प्रतिमा स्थापित करने के अपने दायित्व के प्रति कितना गंभीर था इसका अंदाज इससे आसानी से लग जाता है कि संबंधित फर्म ने भुगतान लेने के बावजूद प्रतिमा अजमेर नहीं भेजी और परिषद ने उसके खिलाफ पुलिस में प्राथमिकी दर्ज करा कर दायित्व की इतिश्री कर ली।

जबकि प्रतिमा स्थापित करने का सीधा उद्देश्य अजमेर को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करना था। बोर्ड में यह तय हुआ था कि दुर्ग पर प्रतिमा ऐसे बड़े प्लेटफार्म पर स्थापित किया जाए जिससे वह अजमेर के किसी भी भाग से आसानी से नजर आ सके।

यह लिया था फैसला

सरकार की मंशा यह थी कि इतिहास में अजमेर को गौरवशाली स्थान दिलाने वाले अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के हमारी आने वाली पीढ़ियों के दिल-दिमाग में बसे रहे तथा इतिहास पुरुष को जनता जान सके। इसी लिहाज से 27 साल पहले प्रतिमा स्थापित करने का फैसला लिया गया था।

राज्य की हृदयस्थली और उत्तर भारत के सबसे ऊंचे पठारी भू-भाग पर बसे अजमेर शहर को पर्यटन, इतिहास, व्यवसाय व धार्मिक लिहाज से विकसित करने के मद्देनजर 4 अप्रैल 84 को तारागढ़ विकास बोर्ड का गठन किया गया।

तत्कालीन मुख्यमंत्री शिव चरण माथुर की अध्यक्षता में गठित बोर्ड की 28 अप्रैल 84 को सर्किट हाउस में हुई बैठक में तारागढ़ दुर्ग पर सम्राट की प्रतिमा स्थापित करने का फैसला लिया गया।

बोर्ड के सदस्य सचिव एवं तत्कालीन कलेक्टर टी आर वर्मा की अध्यक्षता में हुई बैठक में सम्राट पृथ्वीराज चौहान की प्रतिमा को बनवाने तथा उसे दुर्ग पर लगवाने की जिम्मेदारी नगर परिषद (अब नगर निगम) को दी गई। इसी क्रम में नगर परिषद द्वारा मुंबई की फर्म मैसर्स यावलकर आर्ट को प्रतिमा बनाने का आर्डर भी दे दिया।

जिसके अनुसार प्रतिमा की लागत एक लाख नब्बे हजार, मिनिएचर मॉडल साढ़े सात हजार तथा 19 हजार रुपए का ट्रांसपोर्टेशन चार्ज का भुगतान दो किस्त में देना तय हुआ। नगर परिषद ने यह राशि संबंधित फर्म को भुगतान भी कर दी। मजेदार बात यह है कि नगर परिषद को सम्राट चौहान की प्रतिमा सितंबर 1984 में मिलनी थी लेकिन आज तक उसका अता-पता नहीं है।

स्मारक बनाया देखभाल कम

सम्राट को सम्मान देने का सच्चा प्रयास बारह साल बाद सन् 1996 में यूआईटी के तत्कालीन अध्यक्ष ओकार सिंह लखावत ने किया। यह बात अलग है कि प्रतिमा दुर्ग के स्थान पर उसके नीचे पहाड़ी स्मारक पर स्थापित हो सकी।

लोकार्पण तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने किया। अब यह स्मारक पर्यटन का केंद्र है लेकिन पर्याप्त सुविधाओं और देखभाल को तरस रहा है। पर्यटन की दृष्टि से तारागढ़ की लोकेशन पर्यटकों में लोकप्रिय हुई है मगर बेहतर पर्यटन केंद्र की दिशा में प्रयासों की फिलहाल कमी है।